(प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसिज एक्ट)
बच्चों को लैंगिक अपराधों से बचाने के लिए पोक्सो (The Protection of Children from Sexual Offences Act) नामक यह कानून २०१२ में अस्तित्व में आया। इससे पहले आए आ रहे बच्चें के साथ लैंगिक अपराधों के मामलों पर कोई कड़ा नियम नहीं होने की सूरत में आरोपियों के बच निकलने या सुस्त न्यायिक प्रक्रिया के चलते शातिरों को सजा मिलने में देरी होने पर यह कानून बनाया गया। दसका मूल उद्देश्य बच्चों के साथ लैंगिक अपराधों के दोषियों को तुरंत सजा दिलवाना है जिसमें यह कानून अब तक काफी प्रभावी भी साबित हुआ है। पोक्सो कानून की धारा-3 के तहत पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट (Sexual Assault) को परिभाषित किया गया है। अगर कोई व्यक्ति किसी बच्चे के शरीर के किसी भी हिस्से में कोई चीज या अपना निजी अंग डालता है या बच्चे से ऐसा करने को कहता तो यह इस अधिनियम सेक्शन-3 के तहत अपराध है। इसी अधिनियम की धारा-4 में दोषी पाए जाने पर व्यक्ति को सात साल से लेकर उम्र कैद तक की सजा का प्रावधान तय किया गया है। कानून विशेषज्ञों के अनुसार बच्चों को सेक्सुअल अपराधों से बचाने के लिए यह अधिनियम बहुत प्रभावी साबित हुआ है। वहीं कई मामलों में अब तक इस अधिनियम के तहत सजाएं भी हो चुकी हैं। वहीं अगर कोई शख्स बच्चे के प्राइवेट पार्ट को छूता है या अपने प्राइवेट पार्ट को बच्चे से टच कराता है तो धारा-8 के तहत तीन साल से लेकर पांच साल तक कैद का प्रावधान किया गया है।
कुछ प्रावधान जिनका जिक्र जरूरी
बच्चों के लैंगिक शोषण को पोक्सो एक्ट (POCSO Act) की धारा-11 में परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार, अगर कोई व्यक्ति गलत नीयत से बच्चों के सामने अश£ील हरकतें करता है या उसे ऐसा करने को कहता है, पोर्नोग्राफी दिखाता है, दस पर तीन साल तक कारावास की सजा हो सकती है। बच्चों का इस्तेमाल पोर्नोग्राफी के लिए करना एक बहुत गंभीर अपराध है। ऐसे मामले में दोषी पाए जाने पर उम्रकैद तक हो सकती है।
पोक्सो एक्ट के कानूनी प्रावधान – Pocso Act Ke Kanuni Pravdhan
आमजन की भाषा में समझें पोक्सो एक्ट
पोक्सो एक्ट के तहत विभिन्न कानूनी प्रावधानों और बच्चों के संरक्षण के लिए बनाए गए इस अधिनियम को समझना सबके लिए जरूरी है। यह कानूनी रूप से बच्चों को लैंगिक अपराधों से बचाने के लिए एक कारगर कानून है। अकसर ऐसे मामले देखने में आ रहे हैं कि कोई जिम्मेवार व्यक्ति जिसकी देखरेख में बच्चा रखा गया है, वही बच्चे से ऐसा कृत्य करता है तो यह कानून ऐसे व्यक्ति को सलाखों के पीछे पहुंचाने में बहुत प्रभावी है। कोई शिक्षक, अस्पताल कर्मी, पुलिस कर्मी या फिर जिसकी हिफाजत में बच्चा हो, अगर वही बच्चे के साथ पेनेट्रेटव सेक्सुअल असॉल्ट करता है तो उसके खिलाफ इस अधिनियम के तहत कड़ी कार्रवाई की जा सकती है। वहीं, दो या ज्यादा लोग मिलकर अगर ऐसी हरकत को अंजाम देते हैं या चाकू की नोक पर या हथियार के बल पर ऐसा कृत्य करते हैं तो ऐसे मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद व्यक्ति को धारा-6 के तहत 10 साल से लेकर उम्र कैद तक की सजा का प्रावधान है।
पीडि़तों को जल्द न्याय की जगी आस
संक्षेप में कहें तो इस अधिनियम के बनने के बाद लैंगिक अपराधों के शिकार बच्चों को जल्द न्याय की आस जगी है। हालांकि आंकड़े ऐसा नहीं बताते कि अधिनियम के बनने के बाद इस तरह के अपराधों में कोई कमी है लेकिन ऐसे में मामलों के न्यायालय में पहुंचने पर ज्यादातर मामलों में सजा हो रही है। ऐसे में मामलों में न्यायिक प्रक्रिया में तेजी और संवेदनशीलता दोनों की ही देखने को मिल रही है जिससे पीडि़तों को न्याय मिलने की आस जगी है। हालांकि अभी भी ऐसे मामलों को ज्यादा मीडिया लाइट में लाकर लोगों को जागरूक करने की जरूरत है ताकि इस देश का भविष्य सुरक्षित रह सके।